ये कोई कहानी नही,ये एक किस्सा है जो हमारे समाज का महत्वपूर्ण मगर पिछड़ा हुआ हिस्सा है.

ये बात उस समय की है जब हम बच्चे हुआ करते थे,भला अब भी इतने बड़े नही है,जस्ट सेवेन्टीन. पर तब मासूम,नादान और थोड़े डिटेक्टिव टाइप भी थे.हमे हर विचाररहित, विवेकशून्य या अंधश्रद्धा का जवाब चाहिए था.कई बार हमारे घरवाले परेशान होकर सवालो का मनचाहा जवाब दे देते थे.क्योकिं कुछ सवाल ऐसे भी थे जिनके जवाब आज तक किसीने पूछे भी नही और किसीने बताए भी नही थे.

उन दिनों एक और सवाल मेरे मन मे घर कर रहा था जो कि दहेज,डौरी, यौतुक.जो प्रथा उत्तरवैदिक काल से चली आ रही है.बचपन मे मेरा ये समझ था कि लड़की वाले नही बल्कि लड़के वाले दहेज देते होंगे.बिल्कुल क्योंकि अगर वो लड़की को हमेशा के लिए अपने घर ले जाएंगे,उससे काम करवाएंगे,उसे अपने माँ बाप और परिवार से दूर रखेंगे तो इसके बदले लड़के वाले ही दहेज देते होंगे.मगर जल्द ही मेरा ये समझ टूटने वाला था.

मेरी बड़ी बहन चारु दीदी अचानक से अपने ससुराल से हमारे घर चली आयी.उनकी शादी हुए अभी बस छ्ह महीने ही हुए थे.जब वो आयी तब मैं बाहर आँगन में दोस्तो के साथ खेल रहा था,जैसे ही मैने दीदी को देखा मैं भागकर उसके पास गया और उन्होंने मुझे कसके गले से लगा लिया और जोर जोर से रोने लगी, उतने में आवाज सुनकर माँ बाहर आयी और दीदी का हाथ पकड़कर तुरंत उसे घर के अंदर ले गयी.जब मै थोड़ी देर खेलने के बाद घर गया तब भी चारु दीदी रो रही थी और माँ उनके पीठ पे दवाई लगा रही थी.में उनके करीब जाके खड़ा हो गया तो मैंने देखा कि उनके पीठ की सारी चमड़ी उधेड़ गयी थी,उनके सारे बदन पे मानो किसीने कोड़े बरसाये हो.में ये देख कर इतना घबरा गया कि मेरे भी आँसू निकल पड़े और मैंने दीदी से पूछा कि “दीदी आपको किसने मारा?” ये सुनकर चारु दीदी और जोर जोर से रोने लगी.माँ मुझ पे जोर से चिल्लाई और मुझे वहाँ से जाने के लिए कहा.

शाम को पापा घर पे आये और तब तक दीदी का रोना भी बंद हो गया था।खाना खाने तक पापा और दीदी एक दूसरे से एक शब्द भी नही बोले, जैसे ही मेरा खाना खत्म हुआ पापाने मुझे अंदर अपने कंबरे मे जाने को कहा, पर मैं कंबरे में ना जाते हुए दरवाजे के पिछे से उनकी बातें सुनने लगा। पापा काफी गुस्से में थे और दीदी को वापस अपने ससुराल जाने को बोल रहे थे, पापा ये भी कह रहे थे कि हम उनकी सारी माँगे भी पूरी कर देंगे बस तू वापस चली जा, और दीदी बस चुपचाप बस अपने आँसू बहा रही थी। उस दिन में दीदी से और कुछ बोल नही पाया।

दूसरे दिन सुबह पापा अपने काम पर चले गए थे और माँ बाजार गयी थी। तब मैं दीदी के कंबरे में गया वो अपने हाथों के जख्मों पे दवाई लगा रही थी और अभी भी रो रही थी।मैंने उन्हें आवाज दी “दीदी”, मेरी आवाज सुनते ही तुरंत उन्होंने अपने आँसूओको छुपा लिया और मुझे अपने पास बुलाया।मैंने दीदी के गालों से आँसूओको पोछते हुए कहा “दीदी आप क्यों रो रहे हो?”

उन्होंने एक हलकी सी मुस्कुराहट दी और मेरे माथे को चूमते हुए कहा ” अरे नही निशांत मैं कहाँ रो रही हु, तू भी ना कुछ भी कहता रहता है, बुद्धू!”. “तो आपके आँखो से ये आँसू क्यों आ रहे है और कल भी तो आप कितना रो रही थी, और पापा भी तो आपको वापस जाने के लिए कह रहे थे और और ये ज़ख्म ये कैसे…”

मेरी बात पूरी होने से पहले ही दीदी फिरसे रोने लगी, वो इतना रो रही थी मानों दुनिया के सारे गम बस उन्ही के पास हो। मै दीदी को चुप करा रहा था इतने में ही दरवाजे की बेल बजी। माँ बाजार से वापस आ गयी थी इसिलए मैं तब भी दीदी को रोने की वज़ह नही पूछ पाया।

शाम को जल्दी खाना खा कर दीदी अपने कंबरे मे सोने चली गयी, मैं भी खाना खाकर अपने कंबरे मे पढ़ाई कर रहा था लेकिन मेरे मन में अब भी सिर्फ दीदी का ख्याल आया रहा था, मेरा पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नही लग रहा था। पापा रात को देर से घर आये और खाना खाने के बाद अपने कंबरे मे सोने चले गए और मैं भी उनके पास सोने चला गया। माँ कब की सो चुकी थी, तभी मैंने पापा से दीदी की रोने की वजह पूछी।पापा बताने से इन्कार कर रहे थे लेकिन उन्हें पता था कि मैं कितना ज़िद्दी हु और जब तक मुझे अपने सवाल का जवाब नही मिल जाता तब तक ये मानेगा नही। काफी देर पूछने के बाद पापा बताने लगे “ठीक है, ठीक है बताता हूं बाबा सुन, देख निशांत जब शादी होती है तब लड़की वाले लड़के वालों को दहेज देते है। कुछ गहने, कुछ पैसे वो अपनी बेटी के लिए देते है और इस दहेज पर सिर्फ उस लड़की का ही अधिकार होता है, ना कि उसके ससुराल वालों का मगर लालच के मारे कुछ लोग दहेज की मनचाही रक़म माँगते है, और अपनी लड़की की खुशी के लिए हर माँ-बाप को दहेज देना ही पड़ता है, और इसीलिए तेरी दीदी के ससुराल वालों ने शादी के वक़्त जो दहेज मांगा था वो मैं अब तक उन्हें दे नही पाया हूं, और इसीलिए उन्होंने तेरी दीदी को यहाँ भेज दिया,बस इतनी सी तो बात है।” मेरे मन मे ना जाने कितने सवाल अब भी फुट रहे थे क्योंकि मेरा भ्रम जो टूटा था कि लड़केवाले नही बल्कि लड़कीवाले दहेज़ देते है। मैंने पापा से कहा “पर दहेज तो लड़के वालों को देना चाहिए ना!” पापा ने आश्चर्य से पूछा “मतलब?”. मैने कहा “मतलब ये की अगर लड़केवाले लड़की को हमेशा के लिए अपने घर ले जाएंगे, उससे काम भी करवाएंगे और उसे अपने माँ-बाप से दूर भी रखेंगे तो इसके बदले तो उन्होंने दहेज देना चाहिए ना, ना कि लड़की वालों ने। और अब मैं भी चारु दीदी को ये बात समझाऊँगा और उनके ससुराल वालों को भी, फिर सारी प्रॉब्लेम ख़त्म हो जायेगी।”

मेरी बात पूरी करते ही पापा जोर जोर से हँसने लगे और कहने लगे “हा बाबा ठीक है बता देना तेरी दीदी को और उसके ससुराल वालों को , और तु हि सारी प्रॉब्लेम सॉल कर देना मगर मुझे अब सोने दे”. मैंने कहा “हा, मैं अभी जाकर दीदी को बताता हूं, ये सोलुशन सुनकर वो जरूर खुश हो जाएगी। मैं पापा के कंबरे से भाग कर दीदी के कंबरे के दरवाजे पर आया और दरवाजे पे धक्का देके मैने जोर से दरवाजे को खोला, कंबरे की लाइट बंद होने से चारो तरफ बस अँधेरा ही छाया हुआ था। मैंने लाइट का स्विच ढूंढा और लाइट ऑन की और मेरे सामने…..

चारु दीदी की बॉडी पंखे से लटक रही थी, उन्होंने फाँसी लेकर खुदखुशी कर ली थी।

अगली सुबह पुलिस को दीदी के बॉडी के साथ एक चिठ्ठी मिली जो हम सब के लिए थी, जिसमे लिखा था कि “माँ-पापा मैं आपसे बोहोत प्यार करती हूं इसिलए मैं आप लोगो पे और ज्यादा बोझ नही बनना चाहती, मैं वापस अब ससुराल नही जाना चाहती जहाँ इंसान नही दरिंदे रहते है और उन्हें मुझसे ज्यादा मेरी दौलत का इंतजार है, मैं और दर्द नही सह सकती और नाही आपको भी सहने दूंगी, इसिलए मैं आप सबको छोड़ के जा रही हु, अब आपको मेरे लिए कभी रोना नही पड़ेगा।

मेरे भाई निशांत से कहना कि उसकी दीदी सबसे ज्यादा आपसे ही प्यार करती है और उससे ये भी कहना कि जब उसकी शादी होगी तो बस दहेज मत लेना।

गुडबाय।

आपकी चारु

उस दिन से दीदी फिर कभी रो नही पायी और मैं कभी हस नही पाया। और तब से मेरे मन मे ‘एक और सवाल’ है सारे समाज के लिए की “क्या सच मे आपकी बेटियां आप पे बोझ है जिनसे छुटकारा पाने के लिए आप उनकी कीमत लगाते हो?”

#stopdowry

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