उस दिन मैं और प्रीति कॉलेज देखने जा रहे थे । देख कर पापा को रिव्यू जो देना था । क्योंकि उन्हे भी मेरे कॉलेज एडमिशन की चिंता होने लगी थी । 

बोटेनिकल गार्डेन से राजेंद्र प्लेस रास्ता मुश्किल नही लेकिन लंबा जरूर था । बहुत उत्सुकता से हम मेट्रो में खड़े कालिंदी कॉलेज कैसा होगा , अपने अपने दिमाग में उसकी तस्वीर बना रहे थे । गूगल पर फोटो देखी थी हमने लेकिन फिर भी हमारी इमेजिनेशन गूगल की फोटो से थोड़ा ज्यादा थी । 40 मिनिट लगभग लग गए लेकिन राजेंद्र प्लेस पहुंच ही गए हम । 

गूगल मैप , हमारी रक्षक बने हुए हमे रास्ता दिखा रही थी । आधे घंटे लगे हम कॉलेज जाकर अच्छी तरह से देखने में । कॉलेज अच्छा था लेकिन सबसे परेशानी वाली बात ये थी कि गर्ल्स कॉलेज था । लेकिन हम खुश थे क्योंकि पापा को भरोसा हो जाएगा की हां मेरी बेटी लडको के चक्कर में फसने वाली नही है अब। यही सोच कर राजेंद्र प्लेस मेट्रो स्टेशन वापस आ गए । अब कॉलेज जाने और लडको से दूरी बनाए रखने के ख्वाब तूफान की तरफ हम दोनो के दिलों में उमड़ने लगे थे । वापिस आते हुए हमने गलती से वैशाली मेट्रो ले ली और पहुंच गए लक्ष्मी नगर । सच में कहते है सब लड़कियों की बातों का कोई अंत नहीं । बातो में इतना मगन थे हम कि नोएडा और वैशाली की ट्रेन ने कब अपनी बारी बदल ली । खैर, होश आ गया हमे और वापिस यमुना बैंक स्टेशन पर खड़े होकर ट्रेन का वेट करने लगे हम । तभी प्रीति का शैतानी दिमाग उठ कर खड़ा हुआ और मुझे अपनी नौटंकी का शिकार बनाने का रस्ता ढूंढने लगा । मुझे एक शिकार की तरह देख कर वो बोली – ” एक डेयर है , पूरा कर पाएगी ? ” 

” बता क्या करना ?” मैने भी जोश में बोल दिया । उसने इधर उधर देखा और मुझे बोली – ” वो दो लड़के दिख रहे है । उनमें से उस वाले लड़के से फ्लर्ट करना है । सोच ले कर पाएगी । ” 

दो लड़के थे । एक थोड़ा हेल्थी सा था और एक थोड़ा पतला था । मेरी नजर उस पतले वाले पर गई क्योंकि वो भी मुझे देख रहा था । अब लड़कियों को सेंस हो ही जाता है कौन आपको अपनी तिरछी नजरों से देखने की कोशिश कर रहा है । लाइट ब्लू कलर की शर्ट पहनी थी । चेहरे पर नोबिता वाला गोल चश्मा था । 

मैं भी इतनी शरीफ नही ही हूं । फ्लर्ट ही तो करना था , कौनसी बड़ी बात है । हिम्मत जुटा ली मैंने और चली गई जीत का पताका लहराने । 

जाकर सामने खड़ी हो गई मैं लेकिन जैसे ही नजर मिली उससे, एक करंट पूरे शरीर में दौड़ गया । होंठ लड़खड़ाने लगे और उसी हालत में मैने बोल ही दिया बस – ” आप बहुत क्यूट है । आपकी कोई गर्लफ्रेंड है ? ” 

उसने मुस्कुरा दिया । और कहा – ” गर्लफ्रेंड , नही है । ” उसकी मुस्कुराहट ने आधी जान वैसे ही ले ली मेरी । मैं इतनी तेज भागी वहा से और जाकर एक दीवार के पीछे बैठ गई । दुष्ट प्रीति दूर खड़ी मजे ले रही थी । मेरे पास आई और मुझे खड़ा करने लगी । मैं खड़ी हुई लेकिन मेरा सिर हिलने को तैयार नहीं था क्योंकि वो दीवार भी मेरे कंधे के बराबर थी । मुझे दिख रहा था की शायद हमारे बारे में ही बात कर रहे है । 

तू कितनी गरम हो गई है । बुखार आ गया क्या तुझे ? प्रीति ने मेरा सिर छू कर पूछा । मैं कुछ नहीं बोली और थोड़ी ही देर में ट्रेन आई और मैं नॉर्मल हुई । मेट्रो में सीट उन्हे मिलती है जिसने कोई पुण्य किया हो , मजाल है जो हम जैसे पापियों को कभी सीट मिले । मैं खड़े होकर खुद को निर्मल कर रही थी लेकिन नजर सामने टिक गई । उसी लड़के पर , वो भी मुझे देख रहा था । मेरे मन में बस एक बात चल रही थी । यार ये इतना क्यूट क्यों है? और पास से इतना हॉट क्यों लग रहा था । 

ये बात मेरे दिमाग में नहीं मेरे होंठों पर चल रही थी । पता नहीं चला और प्रीति ने सुन लिया । उसने धीरे से बोला बात करले या तो मुझे जाने दे , तेरे दिल की बात बता दूंगी उसको की तुम बहुत हॉट हो , ऐसा मेरी दोस्त को लगा ।  

मैंने कुछ नही कहा । बस उसे देख कर मुस्कुरा दी । वो भी मुस्कुरा रहा था । मयूर विहार एक्सटेंशन पहुंच गए हम । वो बाहर जाने लगा । मेट्रो से निकलते हुए उसने हाथ हिला कर बाय बोला । मेरे हाथ भी खुद ही उठ और हिलने लगे । प्रीति ने देखा और मुझे खीच कर बाहर ले गई और बोली – ” बात कर । नाम और इंस्टा आईडी ही पूछ ले । ” 

मैं अपना हाथ छुड़ाते हुए उसे मना कर रही थी । सच में डीडीएलजे वाली सिमरन लग रही थी मैं । प्रीति मेरे पापा । बस फर्क ये था वो सिमरन को उसके प्यार से दूर कर रहे थे और प्रीति मुझे उसके पास लेकर जा रही थी । लेकिन मैने अपना हाथ छुड़ा ही लिया और भाग गई । 

उस दिन दीवार के पीछे छुपना गलती साबित हुई । क्योंकि वो चला गया । मैं मायूस हो गई । लेकिन चेहरा फिर खिल गया क्योंकि वो आया , दूर खड़ा था  इसीलिए हम दिखे नहीं उसे । प्रीति ने मुझे देख कर कहा , रुक मैं ही जाती हूं। हमारी नजर कुछ पलों के लिए हटी थी और वो गायब हो गया । 

शायद उसे लगा की हम चले गए । ट्रेन आ गई थी लेकिन मैं उस भीड़ में उसे ढूंढ रही थी । 

सच ही था , भीड़ में मिला था और भीड़ में ही खो गया । फिर कभी देखा नहीं उसे । पापा से जिद्द करके डीयू का एंट्रेस एग्जाम दिया और दिल्ली में ही कॉलेज लिया इस उम्मीद से की कभी तो उस रास्ते पर फिर वो आएगा और फिर हमारी नजर मिलेगी । आज 9 महीने हो गए और रोज कॉलेज आती हूं मेट्रो से उसी रास्ते से रोज गुजरती ही । आज भी उसका चेहरा मेरी आंखों के सामने । बस वो नही है । बस एक चीज है – इंतजार ।